कभी कभी लगता है कि इतिहास से ज़्यादा भक्तों को भूगोल से परहेज़ है। अरे भाई हमारा देश पृथ्वी ग्रह पर है ये तो याद है ना? ये तो समझते हो ना कि हमारे हर काम का दुनिया पर प्रभाव पड़ता है? हमारे देश के कानून बेशक भारत के अंदरी मामले हैं, पर हमारा देश दुनिया के अंदर है और हमारी जवाबदेही बनती है दुनिया की तरफ। शताब्दियों से भारत को एक उदार सभ्यता माना जाता रहा है। अभी अगर एक सरकार उस पूरी की पूरी परंपरा को गटर में बहाने की कोशिश करेगी तो दुनिया को असुविधा तो ज़रूर होगी।
क्योंकि जो बात तुम्हारे पल्ले नहीं पड़ रही है वो ये है कि दुनिया भारत से प्यार करती है। हम शांतिप्रिय हैं और दुनिया को बहुत सी चीजें दी है हमने। हमारे साथ जो होता है उससे दुनिया को फर्क पड़ता है। अगर संयुक्त राष्ट्र भारत को लेकर चिंतित हैं तो उसका मतलब ये नहीं कि वो भारत के दुश्मन हैं। उसका मतलब है कि वो भारत का भला चाहते हैं। ये बात नहीं मानते हो तो कह दो कि हमें उन सब चीज़ों की कोई ज़रूरत नहीं है जो मित्र राष्ट्रों की वजह से हमें मिलती हैं। वैसे भी अर्थव्यवस्था का बंटाधार तो कर ही रखा है सरकार ने। ये आखिरी कील भी ठोक ही दो। आज़ादी, खुशी, और शांति दुश्मन नहीं चाहते। दोस्त चाहते हैं।
भक्तों को लगता है कि अगर वो ज़ोर ज़ोर से चिल्लायेंगे तो दुनिया को लगेगा कि वो पूरे भारत की आवाज़ हैं। वो समझते हैं कि उनकी अकेली चीख पुकार दबा देगी बाकी सारी आवाज़ों को और दुनिया को कर देगी बहरा। उन्हें लगता है कि उनकी हीनभावना असल में देशभक्ति है और उन्हें लगता है कि देशभक्त असल में बाहर से आए हुए हमलावर हैं।
इस सब का कारण ये है कि बुद्धि की जो नई परिभाषा बनाई गई है इस सरकार के दौरान वो ये है कि तुम चाहे गुंडे हो या बलात्कारी या हत्यारे, देशभक्ति का झंडा दिखा के निकाल सकते हो। इन टमाटरों को लगता है कि ये सेब हैं और जब कोई इन्हें टमाटर कहता है तो उसे सेब विरोधी बताना शुरू कर देते हैं।
सच ये है कि टमाटर जितना भी नाटक कर ले, वो टमाटर ही रहता है। और सेब सेब रहता है बावजूद इसके कि पूरी टमाटरों की जमात उससे उसकी पहचान छीननी चाहती है। टमाटरों की औकात सबको मालूम है और मालूम रहेगी।
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